सपनों से तुम बाहर निकलो ,
सच्चाई से नाता जोड़ो,
जैसे भी हो-- तोड़ो,तुम इस निद्रा को तोड़ो |
शोषणरुपी राक्षस खा रहा सब को चुन-चुन,
रो रही मानवता बेबस, सर अपना धुन-धुन |
करो प्रहार शोषण पर तुम, कायरता को छोड़ो,
जैसे भी हो -- तोड़ो,तुम इस निद्रा को तोड़ो |
धरती उसकी ,आसमॉं उसका,
हर जीव और इन्सां उसका,
फिर क्यों एक कमाए करोड़ो
और फाके करें करोड़ो ?
खोलो आँखें -- देखो,सच्चाई से मुख न मोड़ो,
जैसे भी हो -- तोड़ो,तुम इस निद्रा को तोड़ो |
क्यों ग़रीबी,अशिक्षा,कुपोषण जनता कि अंतिम रक्त बूंद निचोड़े,
मजदूर बन गए हैं जिसमे सब और ऐश कर रहे हैं थोड़े,
ऐसे पूंजीवादी शिकंजे को क्यों नहीं तुम आज तोड़ो,
जैसे भी हो -- तोड़ो, तुम इस निद्रा को तोड़ो |
है युवा का हाथ खाली, शिक्षित हैं पर रोजगार नहीं,
दिन-दिन गहराता है संकट, है सुधार के आसार नहीं,
जो दे अधिकार वोट का परन्तु रोजगार नहीं,
राजनीति और अर्थतंत्र के ऐसे गठबंधन को तोड़ो,
जैसे भी हो -- तोड़ो, तुम इस निद्रा को तोड़ो |
खोलो आँखें -- देखो,सच्चाई से मुख न मोड़ो,
ReplyDeleteजैसे भी हो -- तोड़ो,तुम इस निद्रा को तोड़ो |
सही लिखा है।